बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
गुटर गुटर गूँ कर आपस में सारे खेला करते थे
रोज़ सवेरे दादी आकर दाना उन्हें खिलाती थी
और कटोरे में पानी रख उनको रोज़ पिलाती थी
खाते थे सारे खुश होकर मटक मटक कर चलते थे
बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
कुछ दिन बाद वहाँ कोने में अंडे आये हमें नज़र
मन करता था बार-बार ये देखें उन्हें ज़रा छूकर
पर दादी के कारण उनको, दूर-दूर से तकते थे
बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
फिर अंडों से निकल कबूतर धीरे से बाहर आये
नन्हें नन्हें प्यारे प्यारे बहुत हमारे मन भाये
मन तो करता था छूने का पर छूने से डरते थे
बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
अब थे पूरे आठ कबूतर झगड़ा करते जो दिन भर
शोर मचाते भी थे इतना जीना कर देते दूभर
माँ गुस्सा हो जाती थी जब वो घर गंदा करते थे
बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
तब गुस्से में आ पापा ने जाली लाकर कसवायी
मगर कटोरी दाना पानी भी इक बाहर रखवायी
वो बेचारे खुश हो होकर तब भी दाना चुगते थे
बालकनी में चार कबूतर बहुत प्यार से रहते थे
08-01-2023
डॉ अर्चना गुप्ता