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13 Jun 2021 · 1 min read

बारी अब दुख हरती के हैं

डगमग पाँव में घाव लिए ,वो परम् वक्ता इस धरती के हैं।
देह का हाल बेहाल हुआ है ,लगते लक्षण कुछ भरती के हैं।
मदमस्त निगाहें ,बोली विदेशी और मुंडी हिलती घण्टे के माफिक ,
घर पे बेलन तैयार है बैठा , बारी अब दुख हरती के हैं।
– सिद्धार्थ पाण्डेय

Language: Hindi
3 Likes · 257 Views
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