बारिश
बारिश(मत्तगयन्द/मालती सवैया)
क्रोध किया जब सूरज ने जलता जग देखि सभी घबड़ाये।
चर्म जला अति रक्त जला सब पीड़ित हो सुख चैन गंवाये।
त्राहि किया हर मानव ने तब मेघ चला जल बूंद गिराने।
बादल की यह रीति पुनीत सभी जग जंतु लगे मदमाने।
दादुर बोलत है खुश हो लगता जिमि सोहर है वह गाता।
पागुर गाय करे मन से मड़ियावत भैंसन पीठ सुहाता।
भूमि हुई खुशहाल बड़ी कण से जल प्रेम लगावत नाता।
जिस्म हँसे लखि के बदरा मन मोर प्रसन्न सदा सुख पाता।
बारिश में तन भींगत है तब वारि लगे जिमि अमृत धारा।
ऊपर नीर गिरे सुख दे मन मस्त हुआ तन शीतल न्यारा।
आँगन में जल वृष्टि लगे अति मोहक धार मिले सुख सारा।
पावस मौसम है रसदार सदा दिलदार सुहावन नारा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।