बारिश
आसमान से निरख धरा को
उमड़ घुमड़ घन बरस रहे ।
मानो जैसे अपने घर को
जल्दी आने को आतुर हैं ।
उनके आने की आहट पा
देखो तरुवर सब झूम रहे
धरती के अरमान भी सब
सोंधे सोंधे हो महक उठे ।
टिप टिप बूंदे है ताल बनी
हवा ने सरगम साधी है ।
खग कुल गा-गाकर नाच रहे
आंखें लख सब सुख पाती है।
मन करता आज निकल बाहर
झूमूँ गाऊँ हो मस्त मगन |
बूंदों से कर लूँ अठखेली
बचने का हो न कोई जतन ।
इतना भीगूँ इस बारिश में
सब अश्रु लवणता धुल जाए ।
आनन्द प्रकृति का तन से हो
मन में मिश्री सा घुल जाए ।