बारिश
बारिश
प्रतिदिन की भांति मैं शाम को छुट्टी के बाद अपनी कार से घर लौट रही थी। बरसात का मौसम था, बादल भी उमड़ -घुमड़ कर घिर रहे थे ,ठंडी- ठंडी हवाएं आ रही थी, मैं समझ गई थी कि बारिश होने वाली है। मेरा घर दफ्तर से 20 -25 किलोमीटर की दूरी पर था। कुछ रास्ता बीच में लगभग चार-पांच किलोमीटर का बिल्कुल सुनसान इलाका था। मैं झटपट अपने घर पहुंचना चाहती थी। जैसे ही मेरी गाड़ी सुनसान क्षेत्र में पहुंची की एकदम बंद हो गई। मैंने उतरकर इंजन को देखा पर कुछ समझ नहीं आई ।हल्की -हल्की बारिश भी शुरू हो गई। मैं सोच में डूब गई कि अब क्या करूं, किसे पुकारूं ,बहुत देर हो गई मैं कार में बैठी अंदर ही अंदर डर रही थी। घर की चिंता भी खाए जा रही थी ,घर में बीमार मां और पिताजी भी चिंता कर रहे होंगे। एक भाई है उसे गंदे नशे की लत लग चुकी है। मैं बहुत डरी जा रही थी, ऊपर से रात भी अपनी बाहें फैला रही थी। सड़क से गाड़ियां तो बहुत गुजरी परंतु मैंने किसी से सहायता नहीं मांगी। तभी सामने से एक व्यक्ति हेलमेट और रैनसूट पहने अपनी बाइक को धकेलते हुए आ रहा था। मेरी जान में कुछ जान आई ।मैंने सोचा यह व्यक्ति भी मेरी तरह मुसीबत में फंसा है। मैंने साहस जुटाकर कार का दरवाजा खोला और कहा- सुनिए मिस्टर! मेरी कार अचानक बंद हो गई क्या आप मेरी मदद करोगे?
वह रुक गया, थोड़ा सहमा, पीछे मुड़कर देखा और बोला-
मैडम! आप मुझसे कुछ कह रही हैं?
मैंने कहा – जी हां! आप से ही कह रही हूं।
वह थोड़ी देर चुप खड़ा रहा , फिर अपनी बाइक को एक किनारे खड़ा करके सीधे इंजन के पास गया और उसे अपने मोबाइल की टॉर्च से देखने लगा।
मैं भीतर ही भीतर कांप रही थी ,अंधेरा भी खूब हो चुका था ,मैं सहमी सी कार की दूसरी ओर खड़ी हल्की-हल्की बारिश से भीग रही थी।
उसने मुझसे कहा –
मैडम! आप गाड़ी के अंदर बैठ जाइए। परंतु मैं जमाने के डर से बहुत डरी हुई थी। मैंने कहा-
जी! कोई बात नहीं ,मैं ठीक हूं। शायद वह मेरी अंदर की बात समझ गया हो। उसने फिर कहा आप कोई संकोच न करें कृपया आप अंदर बैठ जाएं नहीं तो आप भीग कर बीमार हो जाएंगी। मैंने उनकी बात को सुना अनसुना कर दिया। थोड़ी देर में वह फिर बोला-मैडम ! गाड़ी स्टार्ट करके देखें। मैं तेजी से गाड़ी के अंदर बैठी और गाड़ी स्टार्ट की। गाड़ी झट से स्टार्ट हो गई। मैंने उस व्यक्ति से मेहनताना पूछा- जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।आपको गाड़ी ठीक करने के कितने रुपए दूं? वह व्यक्ति बहुत देर तक चुप देखता रहा और बोला-मैडम कोई बात नहीं ,आप अपने घर जाइए। मेरा मन उनके प्रति कृतज्ञ से भर गया और भीतर ही भीतर उनके लिए शुभकामनाओं की प्रार्थना करने लगी। परंतु अंधेरा होने के कारण न मैं उन्हें देख सकी और न ही वह मुझे देख सके। खैर! हम दोनों अपने अपने घर की ओर चल पड़े।
कुछ महीनों बाद मेरी शादी हो गई। मेरे पति बहुत नेक विचारों वाले ,अच्छे व्यक्तित्व वाले प्रतिभावान इंसान है। मैं उन्हें पाकर जैसे धन्य हो गई। हम दोनों एक दूसरे के विचारों व भावनाओं को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। बरसात की छुट्टियां हुई मैंने अपने पति से मायके जाने की बात कही तो वे तुरंत मान गए। हमने अपना सामान बांधा और हंसी- खुशी अपनी गाड़ी से निकल पड़े। चलते चलते मेरे पति ने एक स्थान पर गाड़ी रोक दी और बाहर निकल कर इधर-उधर टहलने लगे। तभी बारिश की रिमझिम फुहारे बरसने लगी। मैंने कहा-जी! चलो गाड़ी में बैठते हैं भीग जाएंगे। इस पर उन्होंने कहा बारिश में भीगने का आनंद ही कुछ और होता है। फिर वे अपने साथ घटित एक छोटी सी कहानी सुनाने लगे। 2 वर्ष पहले मेरी बाइक खराब हो गई और मैं रेनसूट पहने अपनी बाइक को धकेलता हुआ इसी सड़क से जा रहा था और यहां एक भली लड़की की भी कार खराब हो गई थी। वह बेचारी डर के मारे गाड़ी के अंदर बैठी सोचती रही फिर उसने मुझे आता देख मुझसे सहायता की गुहार लगाई, परंतु वह मुझसे भी डरी सहमी गाड़ी में नहीं बैठ रही थी, और बारिश में भीगती हुई जब तक कार ठीक नहीं हुई बाहर ही खड़ी रही। जब गाड़ी ठीक हो गई तो मुझसे मेहनताना पूछने लगी।
तब मैंने अपने श्रीमान से पूछा-उस लड़की का क्या नाम था? वह देखने में कैसी थी?
तब श्रीमान बोले-मैंने उस लड़की का चेहरा देखा ही नहीं और न ही उसका नाम पूछा। वह मुसीबत में यहां फंसी थी और बहुत डरी हुई थी बेचारी।
मैंने कहा-क्या आप उससे मिलना चाहोगे?
इस पर मेरे श्रीमान बोले ,क्या करूंगा उससे मिलकर। कुछ यादें हैं जो याद रह जाती है।
मैंने जिद की, नहीं! मैं आपको उस से मिलवा कर ही रहूंगी।
वे बोले-क्या तुम उसे जानती हो?
हां- हां जी बहुत अच्छे से जानती हूं।
उसका नाम सीमा है जो आपकी धर्मपत्नी है। देखो न संयोगवश आज वही तारीख ,वही शाम का समय ,वही बारिश वाली रात और वही हम और तुम। परंतु वो बारिश कुछ और थी और अब की बारिश कुछ और है। इस पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े, और बोले रब ने बना दी जोड़ी।
ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश