“बारिश संग बदरिया”
लालिमा छाई है
माह सावन का
चमक रही बिजली
घुमड़ रही बदरिया,
तन को कर स्पर्श
मचाए यह गुदगुदी
सुरीली आवाज संग
चले जब मंद हवा,
कागज की ले नाव
फुदक रहा बचपन
शीतल फुहार छूकर
मचले खूब जवानियां,
पत्तों पर बैठी ओस
टपके जब चले हवा
गलियों में है कीचड़
झूमे तब पैर धंसा,
चाय की है गरमाहट
दिख रही हैं कचौरियां
तड़ित की गड़गड़ाहट
तल रही हैं पकोड़ियां,
मन ही मन वृद्ध
याद कर मुस्कुराया
जवानी कितनी सुहानी
क्यों बुढ़ापा आया ?
नृत्य लीला मयूर की
प्रसन्नचित्त देख बदरा
कोयल ने छेड़ राग
शमा है महकाया,
खुश झरनों संग गिरी
आनंदित हुई है धरा
सरिता कल कल करे
प्रवाह जल समुद्र में गिरा,