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2 Jul 2017 · 1 min read

बारिश फिर आ गयी

बारिश फिर आ गयी

उनींदे सपनों को

हलके -हलके छींटों ने

जगा दिया

ठंडी नम हवाओं ने

खोलकर झरोखे

धीरे से कुछ कानों में कह दिया।

बारिश में उतरे हैं कई रंग

ख़्वाहिशें सवार होती हैं मेघों पर

यादों के टुकड़े इकट्ठे हुए

तो अरमानों की नाव बही रेलों पर

होती है बरसात

जब टकराते हैं काले गहरे बादल

फिर चमकती हैं बिजलियाँ

भीग जाता है धरती का आँचल।

बदरा घिर आये काले – काले

बावरा मन ले रहा हिचकोले

मयूर नाच रहे हैं वन में

उमंगें उठ रही हैं मन में

एक बावरी गुनगुना रही है हौले -हौले

उड़ -उड़ धानी चुनरिया मतवाली हवा के बोल बोले।

बूंदों की सरगम

पत्तों की सरसराहट

मिटटी की सौंधी महक

हवाओं की अलमस्त हलचल

शीशों पर सरकते पानी की रवानी

सुहाने मौसम की लौट आयी कहानी पुरानी।

खिड़की से बाहर

हाथ पसार कर

नन्हीं – नन्हीं बूंदों को हथेली में भरना

फिर हवा के झौंकों में लिपटी फुहारों में

तुम्हारे सुनहरे गेसुओं की

लहराती, लरज़ती लटों का भीग जाना

याद है अब तक झूले पर झूलना -झुलाना

शायद तुम्हें भी हो …… ?

कुम्हलाई सुमन पाँखें

निखर उठी हैं

एक नज़र के लिए

चाँद पर लगे हैं पहरे

चला हूँ फिर भी सफ़र के लिए

यादों का झुरमुट

हो गया है फिर हरा

मिले हैं मेरे आसूँ भी

है जो बारिश का पानी

तुम्हारी गली से बह रहा।

हमसे आगे

चल रहा था कोई

किस गली में मुड़ गया

अब क्या पता

बेरहम बारिश ने

क़दमों के निशां भी धो डाले ………

@रवीन्द्र सिंह यादव

Language: Hindi
409 Views
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