****बारिश की बूंदें****
बारिश की ये प्यारी बूंदे
छमछम कर के बरसी जाये
दुल्हन सी सज सँवर के धरा
सुंदर अनुपम रूप दिखलाये
स्याह पयोद, दामिनी चमके
मंद निशा मधु कामिनी महके
धरा में अंनत तृण उग आये
हरियाली सर्वत्र दिखलाये
भीतर गगन शशि को छुपाये
सितारा कोई न दिखलाये
जुगनू निशा संग बतियाते
खग तो मीठे गान सुनाते
मौसम ने ली यूँ अंगड़ाई
हवाओं में ठंडक घुल आई
आभा संग कीट पतंगे झूमे
मदमस्त मेंढक, जलचर घूमें
धरा ने ओढ़ी चुनर धानी
बहने लगी पवन सुहानी
सूखे पात डाल हरियाई
मद्धम सुगंधित सी पुरवाई
रिमझिम रिमझिम सावन बरसे
शुष्क धरणी का भी मन हरषे
तैरती कागज की कश्तीयाँ
भीगते शहर और बस्तीयाँ
धरा तो है सबकी जननी
झूमकर आई बरखा रानी
प्यारी बूँदों की मनमानी
मोहक”कविता”ये सुहावनी
✍️”कविता चौहान”
इंदौर ( म.प्र)
स्वरचित एवं मौलिक