बारिश की बूंदें
बारिश की बूंदें गिरी टिप टिप टिप।
साथ गर्म चाय की, सिप सिप सिप।
पकौड़े गर साथ में होते गर्म गर्म
स्वर्ग जैसा हमको होता थोड़ा भ्रम।
कभी तेज़ कभी मीठी मीठी फुहार
पिया मिलन को करें जिया बेकरार।
टिप टिप से बूंद गर सीप में जा गिरे
बन जाये मोती, नसीब उसका निखरे।
प्रकृति को धो जाये ,बारिश के ये घन
काश हर बैर से भी मुक्त कर दे मन।
टिप टिप जैसी छुपी है बादल में
छुपा ले आंख के अश्क ये आंचल में।
सुरिंदर कौर