बारिश की पहली बून्द
बारिश की
पहली बून्द की तरह
तृप्त कर जाता है
मेरे तन-मन को
तुम्हारा प्यार
फिर
ओढ़ कर
धानी चुनरिया
खुशियों की
लहलहा उठती हूँ मैं
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स्वाति की एक बून्द
बरस कर
तृप्त कर जाती है
पपीहे की प्यास
तेरे प्यार की चाहत
अक्सर
मुझे
पपीहा बना देती है
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’ (भोपाल)