बारिश की आस..
सहते सहते उमस को, लोग हुए बेहाल ।
बारिश की अब आस में, बैठे अपने हाल ।।
आषाढ़ अब बीत रहा, देखे सावन राह ।
होगी धरा हरी भरी, ऐसी सबकी चाह ।।
मेघ गरज रहें नभ में, धरती करें पुकार ।
जन जन ताके गगन को, क्यों न बरसे फुहार ।।
देखो मेघ बरस उठे , सुनकर आर्त पुकार ।
जगत के जन हर्ष उठे, खूब हुई बौछार ।।
माटी में पानी घुले, पानी में सब जीव ।
होकर पेड़ हरे भरें ,सुंदर दिखे सजीव ।।
—-जेपीएल