बारिश का मौसम फिर आ रहा है
हरी सी यह चादर बिछा के गया है कौन
तपती धूप को कोमल बना गया है कौन
इस सूखी मिट्टी को महकता बना गया है कौन
इन गर्म हवाओं को शीतल बना गया है कौन
यह बादलों में श्याम रंग चढ़ा गया है कौन
यह फूलों को खिला गया है कौन
यह पंछियों की आवाज में सुर लगा गया है कौन
यह सांसों को निर्मल बना गया है कौन
मुझे लगता है यह बरखा का जादू छा रहा है
हर एक दिल में गुनगुना रहा है
नए दीपक जला रहा है
मौसम सुहाना बना रहा है
मेरे स्वप्न को पंख लगा रहा है
इन बादलों में मुझे उड़ा रहा है
लगता है बारिश का मौसम फिर आ रहा है
लगता है बारिश का मौसम फिर आ रहा है
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर द्वितीय वर्ष
एनएसएस वॉलिंटियर
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय