बारिश और लाक-डाउन
लाॅकडाउन का समय बहुत ढेर सारे यादगार अनुभवों से जीवन को भर गया है। इन्हीं में से एक अनुभव अभी तक भुलाए नहीं भूलता। मेरे पड़ोसी अकेले अपने 12 वर्ष के बेटे के साथ रहते थे। एक रात उनका बेटा छत से गिर गया। लखनऊ में इतने कोरोना पेशेन्ट निकले थे कि मेरी एल. डी. ए. कालोनी सील हो गई थी। आस-पास जाना मना था। वो गाड़ी इत्यादि भी नहीं चला पाते थे। मैंने समय की नज़ाकत देखते हुए अपनी एक्टिवा निकाली और उनको व घायल बच्चे को गाड़ी पर बैठा कर अस्पताल दिखाने चल दी। वैसे तो रात के दस ही बजे थे, पर अचानक से बादल छा गए और तेज बारिश शुरू हो गई। मैं घबरा गई, साथ में मरीज, उसके सर से खून बहे जा रहा था। क्या करूॅं मैं, बस यही सोच रही थी कि मुझे एक डाक्टर का नाम दिखाई दिया। मैंने गाड़ी मोड़ ली। पड़ोसी की तड़प देखकर मन व्यथित था। मैंने तुरंत क्लीनिक की घंटी बजाई। एक सभ्य महिला ने दरवाजा खोला और कहा –
“डाक्टर रात को नहीं देखते हैं”
“मरीज को बहुत तकलीफ़ है”, मैंने रोते हुए कहा।
वो सहृदय महिला अंदर गई और क्लीनिक का दरवाजा खोल कर बोली “आ जाइये”
मैंने पेशेन्ट को लिटा दिया, खून से लथपथ चेहरा देख मैं घबरा गई थी। उसके पापा भी फूट-फूट कर रो रहे थे।
“आप बाहर जाइये”
वो मुझसे बोलीं, तब मुझे पता चला कि वो खुद डाक्टर है।
उन्होंने दवा दी, इन्जेकशन दिया और कहा कि
“तुरंत ब्लड देना पड़ेगा, जान को खतरा है, हम इंतजार नहीं कर सकते”।
मुझे अपने ‘ओ पासिटिव’ ब्लड ग्रुप होने का फायदा उस दिन दिखा, मैं तुरंत अपना ब्लड देने को राजी हो गई। वो २ घंटे बहुत कशमकश में बीते.. डाक्टर सिम्टम्स वाच करती रही। फिर कुछ ही देर में, बच्चे ने ऑंखें खोली, तो हम सबकी जान में जान आई।
मैंने उस डाक्टर को कितना शुक्रिया कहा, बस बता नहीं सकती। वो रात मेरे जीवन की बहुत यादगार रात थी। पड़ोसी ने मुझे बहुत शुक्रिया कहा, उनको घर छोड़ कर लौटी तो बारिश रुक चुकी थी और सवेरा हो रहा था। मेरे मन में अपार शांति थी, कि चलो अब सब ठीक हो गया है।
स्वलिखित
रश्मि लहर
लखनऊ