बारहमासी समस्या
ऐ राही
रास्ते हैं कठिन
कैसे चल पाओगे इस रास्ते?
गर्मियों में, ऐ राही
होती हर तरफ कंटीली-कंटीली झाड़ियाँ,
ठोस औ तपी होती है भू,
नाजुक पग रखने से ही पीड़ा हो उठेगी,
ऐ राही,
कैसे चल पाओगे इस गर्म-कंटीली राह पर ?
वर्षा ऋतु में, ऐ राही
होता हर तरफ जमा हुआ गंदा पानी,
और होते विषैले-विषैले कीट-पतंग,
बन जाती जल औ कीचड़ से संयोजित दलदल,
कैसे पार करोगे दलदल तुम?
कैसे बचोगे सर्प, कीट-पतंग से तुम,
ऐ राही,
तुम ना चल पाओगे इस रास्ते,
जिद्द चलने की निकाल दो तुम मन से |
शीत ऋतु में, ऐ राही
है होती ठंडी-ठंडी हवा के झोंके,
होता पृथ्वी कुहासों से ढका,
ना राह दिखेगी और न कोई राही,
ऐ राही!
कैसे चल पाओगे अदृश्य राह पर ?
मैं राही हिम्मतवाला,
बस एक कोस दूर अपने मंजिल से
अब वापस ना मैं जाने वाला,
ऐ बाधा!
अगर करता रहा तेरे जाने का इंतजार,
तो बीत जाएगा जीवन मेरा इंतजार में ही,
और मुझे कुछ ना हासिल हो पाएगा,
इसलिए ऐ बाधा!
तेरे रास्ते में मैं बाधा बन जाऊँगा,
तुझे हारा, मैं अपने मंजिल तक पहुँचूँगा |