बाबुल की स्मृति चिन्ह
डॉ अरूण कुमार शास्त्री 💐 एक अबोध बालक💐 अरुण अतृप्त
बचपन से लेकर मानस में
नाम एक ही चिन्हित है
सारे जग से जो अलग थलग
सर्वाधिक सर्वोच्च सर्वोत्तम है
तात कहो पिता कहो , बाप कहो
बाबू कहो या फिर कह लो अब्बा
अपनी सन्तति की संस्कृति में
उसको बाबुल की स्मृति अटल गहो
थी छोटी सी काया जबसे
जीवन के शुरुआती सन्दर्भ सभी
कोमलता की कोंपल से थे तबसे
सब याद रहे हम बच्चों को
क्योंकि हम सब पैदा थे तुम्हरें तन से
किस रूप हमें पाला पोसा
किस रूप हमें आधार दिया
हे बाबुल तेरी नगरी में जब
हमरे यौवन का अधिकार मिला
हम आज खड़े तन वृक्षों से
हम आज सबल हम आज सफल
धरती के पुत्र कहाते हैं
हम मातृभूमि के मतबाले
ले कीर्ति पताका को तेरी
सकल विश्व लहराते हैं