बाबुल की बिटिया
बाबुल के आंगन की चिडि़यां
ईक दिन तो तुझे उड़ जाना हे,
जिसके संग में खाई खैली
छोड़ उसी को जाना हे ,
महक रही उपवन की डाली
घर आंगन महकाना हे,
चाेतरफा हो उजियारा
दीपक कि तरह जल जाना हे,
हे मालिक तूं ये तो बता
क्या ये तेरा पैमाना हे,
जिसकी कोख से जन्म लिया
छोड़ उसी को जाना हे,
भर आए बाबुल के नैना
बिटिया को चले जाना हे,
बेशक भूले जग सारा
बाबुल को भूल ना जाना हे!
बलकार सिंह हरियाणवी*