बाबा शुम्भेश्वरनाथ के श्री चरणों में समर्पित
ॐ शुम्भेश्वरनाथाय नमः
ॐ शुम्भेश्वरनाथाय नमः
बाबा शुम्भेश्वरनाथ के श्री चरणों में समर्पित
थे हुए प्राचीन काल में दो दानव अति भयंकर ।
था शुम्भ निशुम्भ नाम जिनका
थे बंधन में बंधित जिनके भोले शंकर।।
शम्भु ने यों तिकड़म भिड़ाया।
जिसने शम्भु को मुक्त कराया ।।
कहा जब शम्भु ने निश्चय ही चलूँगा तुम्हारे साथ।
चलने से पहले अवश्य कहुँगा ये बात ।।
सुन यह दोनों शम्भु पर क्रोधित हुआ ।
बोला इस प्रकार वह…..
कहा सो कहा अब न कहना।
वरना होगा बहुत बुरा यह सोच लेना।।
शम्भु यह सुन मन में मुस्काए।
पर उनके सम्मुख भयभीत होने का ढोंग रचाए।।
शम्भु के उभियाने पर बारम्बार ।
मूढ़मतियों ने शम्भु को लगाया फटकार ।।
साथ ही शम्भु को वहीं दिया पटक।
सहसा ही शम्भु हो गए वहीं स्थापित झटपट ।।
यह देख शुम्भ मन में पछताया।
शम्भु को बहुत हिलाया।।
क्रोधावशिष्ट होकर अन्त में अपनी गदा भी दे मारी।
और इसी घटना ने उनकी ख्याति बढ़ा डाली।
आज भी दर्शनीय है वो स्थान ।
जहाँ शुम्भ ने छोड़ा था अपना क्रोध रूपी बाण।।
है वह स्थान झारखंड का गौरव ।
वश न चला पाए भी जहाँ कालभैरव ।।
बासुकीनाथ और बैद्यनाथ के मध्यान्तर में स्थित हैं वो परम पावन धाम।
भक्तजन प्रेम से कहते जिन्हें हैं शुम्भेश्वरनाथ।
है दीनों के नाथ जो और अपाहिजों के हाथ।।
गर्व है मुझे भी अपने आप पर।
हुआ जन्म मेरा क्योंकि है इसी स्थान पर।।
कराते हैं बाबा अपने स्नेह सुधारस का पान।
साथ ही हम धौनी वासियों को मिला है बाबा का वरदान।
कि भोलेश्वर पर हमारा और हम पर भोलेश्वर का सर्वदा रहेगा ध्यान।
“””””जय शुम्भेश्वरनाथ”””””