बाबा ब्याह ना देना,,,
बाबा ब्याह ना देना,,,
तुम मुझको दूर कहीं परदेश।।
जहां तुम सबको देखने को,,,
तरसे मेरे ये नैन।।
मैं चाहूं भी तो आ ना सकूं,,,
इतनी दूर ना हो मेरी ससुराल।।
जहां सोच सोच कर मैं तड़पू,,,
जानने को तुम सबका हाल।।
भईया जैसा प्यारा हो,,,
बाबा तुम जैसा रखवाला।।
पति ढूंढना ऐसा मेरा,,,
जो हो मुझको समझने वाला।।
बाबा तुमने उड़ने को,,,
मुझको खुला दिया आसमान।।
ससुराल ढूढना ऐसी,,,
जहां मिले मुझे तेरे आंगन सा सम्मान।।
हे, ईश्वर ये कैसा,,,
नारी का बनाया नसीब।।
जिसे अपनो को छोडकर,,,
जाना पड़ता अंजनों के करीब।।
अम्मा की यादों में,,,
मैं तड़पुंगी दिन और रात।।
सीखें उनकी लेकर जाउंगी,,,
मुझे पता बड़ी काम आएंगी जो है मेरे साथ।।
अम्मा बाबा से बोलो,,,
क्यों कहते है ऐसा?
बिटिया हूं उनकी,,,
फिर क्यूं बताते है मुझको धन पराया?
ताज मोहम्मद
लखनऊ