बाबागिरी
लघुकथा
बाबागिरी
नवनीत बचपन से ही बड़ा होनहार था। पहली कक्षा से ग्रेजुएशन तक की सभी कक्षाओं में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने के तुरंत बाद अपने पहले ही प्रयास में यू.पी.एस.सी. की परीक्षा पास कर एक आई.पी.एस. अधिकारी बन गया।
निर्धारित प्रशिक्षण और परीवीक्षा अवधि पूरा करने के बाद पुलिस अधीक्षक के रूप में उसकी पोस्टिंग रामपुर जिले में होने के पहले ही हफ्ते गृहमंत्री जी का दौरा हुआ। मंत्री जी को उस क्षेत्र के प्रख्यात बाबा श्री संतराम जी के आश्रम उनके दर्शन के लिए जाना था।
निर्धारित तिथि को वह मंत्री जी के स्वागत के लिए पहुंच गया। जैसे ही मंत्री जी हैलीकॉप्टर से बाहर निकले, नवनीत के आश्चर्य का ठिकाना न था। उसके सैल्यूट के लिए उठे हाथ उठे ही और आँखें फटी की फटी रह गईं। मंत्री जी के रूप में उसकी यूनिवर्सिटी का वही लड़का था, जिसे यूनिवर्सिटी कैंपस में नशीले पदार्थों की बिक्री करने से कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।
खैर, ड्यूटी तो करनी ही थी। वह मंत्री जी को ससम्मान बाबा जी आश्रम लेकर गया। मंत्री जी को जरा सा भी एहसास नहीं हुआ कि उनके साथ में चल रहा डी.एस.पी. कभी उसका जूनियर छात्र रह चुका है।
आश्रम में बाबा जी के दर्शन कर वह पुनः आश्चर्यचकित रह गया। बाबा जी कोई और नहीं उसी की यूनिवर्सिटी का वह पूर्व छात्र था, जिसे एक जूनियर लड़की से छेड़खानी करने पर बाकी लड़कियों ने मिलकर लात-घूँसों से खूब खातिरदारी करने के बाद पुलिस के हवाले कर दी थी।
आश्रम में मंत्री जी और बाबा जी के बीच मौसेरे भाईयों जैसीे चल रही बातचीत से ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि उनके संबंध बाबा जी और भक्तों जैसे हैं।
उधर आश्रम के बाहर मंत्री जी की पार्टी के कार्यकर्ता और बाबा जी के भक्तों की भीड़ उनकी जय-जयकार कर रही थी। इधर नवनीत अपनी यूनिवर्सिटी के इन दोनों होनहारों की प्रगति देख किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़