बाप की चाह
एक बुढे बाप की आश यही है ।
मिटा दे उसकी प्यास गर कोई है ।।
लड़खड़ाते हाथ पैरो से अब ठीक ठाक से चला नही जाता है ।
दो रोटी खाने को उसको लाखो तानो से मारा जाता है ।।
उसके चश्मे के नम्बर बढ़ गए है फिर भी, उनको लकड़ियां बिनने पास के बाडे मे जाया जाता है ।
जिस कमरे में पत्नी की फ़ोटौ के साथ वो रहता है ।
गर्मियो मे तपता हैं ‘बारिश मे गीला रहता है ठण्ड मे काँपता बाप एक चाय को तरसता है ।।
सूरज की पहली किरण उसके कमरे मे शायद एक बजे तक आती हैं ।
सोचता है सुबह हुई हैं ‘खाना आया नही और रात हो जाती हैं ।।
एक दिन बाप ने वसियत लिखने की ठानी।
बहू झट से चाय और नाश्ता ले भागी।
बाप के चहरे पर आज सन्तोष था।।
वह अब तक #वसीयत# लिख चुका था ।उसकी पूरी दौलत अनाथालय को ‘और वह स्वर्ग की और निकल चुका था।।