बापू गांधी
बापू गांधी
कोटि-कोटि, नमन उन्हें जो
सत्य की राह पर, अड़े रहे ।
बुलंद हौसले, लेकर बापू
अडिग हमेशा, खड़े रहे ।।
लंदन में, जिसने की पढ़ाई
धन दौलत थी, उनके पास ।
वतन की खातिर, वैभव छोड़ा
सत्य अहिंसा में, था विश्वास ।।
पिता दीवान थे, मोहनदास के
माँ उनकी थी, पुतलीबाई ।
झूठ नहीं बोलूंगा, ऐसी
कसम थी, बापू ने खाई ।।
रंगभेद को, जड़ से मिटाने
बापू गए थे, अफ्रीका ।
गौरों से भी, नहीं डरे वो
रेल से था, उनको फेंका ।।
आश्रम खोला, देश में आकर
सत्य-ज्ञान, सिखलाने को ।
आया निमंत्रण, चंपारण से
किसान की पीड़ा, मिटाने को ।।
अहमदाबाद और, खेड़ा से भी
सत्याग्रह की, अलख जगाकर ।
गौरों से मुक्ति दी, उन्होंने
निडरता की, ज्योति जला कर ।।
जलियाँवाला, की पीड़ा ने
उद्वेलित मन, कर डाला ।
त्याग विदेशी, तन का कपड़ा
चरखे को, अपना डाला ।।
डरकर, अंग्रेजों ने उनको
जेल में बंदी, बना डाला ।
बिना हथियार के, योद्धा पर
कायरों ने घेरा, था डाला ।।
खिलाफत आंदोलन, में भी उन्होंने
भूमिका, अहम निभाई थी ।
हिंदू मुस्लिम एक हो जाएं
कसम, उन्होंने खाई थी ।।
असहयोग, चला कर उन्होंने
गौरों को, मुश्किल में डाला ।
अंग्रेजों में खौफ, बैठ गया
पड़ा था यह, किस से पाला ।।
चौरी-चौरा की, हिंसक घटना
उनके लिए थी, बहुत दुखदायी ।
बंद करके, आंदोलन अपना
जेल में पीड़ा, फिर पाई ।।
बापू नाम की गूँज, से जग में
आया पसीना, गौरों को ।
बहिष्कार गौरों, का हो गया
तारे दिख गए, चोरों को ।।
पैदल चलकर, पहुंचे दांडी
निडरता की, दी पहचान ।
दिखने में, कमजोर थे लेकिन
भारत देश का, था वे मान ।।
विनय पूर्वक, फिर से बढ़ कर
बंदूकों से, टकराये ।
लाठी लेकर, बापू अपने
मन से तनिक, ना घबराए ।।
पंचायत का, स्वप्न देखकर
सुंदर भारत को, दी पहचान ।
स्वच्छ भारत, रहे हमारा
बापू का था, यही अरमान ।।
भारत छोड़ो, अभी फिरंगी
नारा उन्होंने, दे डाला ।
कवि अरविंद, यह आज बताएं
बापू था अपना, हिम्मतवाला ।।