बापू को क्यों मारा..
बापू को क्यों मारा..
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माना तुम्हें , मातृभूमि प्यारी थी;
छीन गई, इसकी कई क्यारी थी;
तूने आखिर, बापू को क्यों मारा;
क्या यही इंसानियत तुम्हारी थी।
वो तो अहिंसा के थे,एक पुजारी;
जी चुके थे, अपनी जिंदगी सारी;
मारते, तेरा क्यों नहीं कांपा हाथ;
आखिर,कैसे कर दी तूने ये पाप।
वो तो सत्य के थे, सदा ही साथी;
प्यारे थे उनको,हरेक भारतवासी;
तूने कैसे उनपर हथियार चलाया;
तब भी क्यों न, तेरा जी घबराया।
छोड़ चुके थे वो सब लोभ-लालच;
जब बन चुके , पूरे राष्ट्र के पालक;
तब कैसे आखिर , तूने वार किया;
तुमने क्यों, ऐसा अत्याचार किया।
किसी से नफरत , उनको थी नही;
उनको सबने ही , खूब प्यार किया;
फिर तुमने कैसे उनपे प्रहार किया;
इसपे क्यों नहीं पुनः विचार किया।
यदि लगा ये, उसने पक्षपात किया;
जो गैरों का ही,दिल से साथ दिया।
फिर भी कैसे, तुमने आघात किया;
क्यों नही उनसे , सीधा बात किया।
नाम से तुम जाने जाते, नाथू ‘राम’;
कर दिया आखिर तुने, कैसा काम;
देश पे शहीद हो गए, आखिर बापू;
‘हे राम’,आखिरी नाम तेरा ही जापू।
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स्वरचित सह मौलिक:
……✍️पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।