बापूजी का आह्वान
धरती करूणा की प्यासी,बापूजी फिर से आना।
आकर के इस धरती का, सारा ताप मिटाना।
है दीन दशा दुखियों की, हीन हवा हो गयी है।
है भूखे रोते बच्चे , दूर दवा खो गयी है।
बीमारेगम ने मारा, हर मन की पीर मिटाना।
बापूजी फिर से आना…………………………
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, पाखंडी बांट रहे हैं।
राजनीति में आकर, सिर अपराधी काट रहें हैं।
दुष्ट जमाने के दिल में, प्रेम की ज्योत जलाना।
बापूजी फिर से आना…………………………
पिशाच सभ्यता पश्चिम की, केबल टी.वी. परस रही।
मानव मूल्य अभिशाप बना, नैतिकता अब तरस रही।
ज्वाला जला कर संस्कार की, जीवन मूल्य बचाना।
बापूजी फिर से आना…………………………
नतमस्तक होता शासन, दुर्दांत भेड़िये के आगे।
चोर उचक्के और तश्कर के, लगता है दुर्दिन भागे।
कुर्बानी की फिर कहानी, आकर के सिखलाना।
बापूजी फिर से आना…………………………
ऊंच नींच के भेद भाव ने अपनत्व भाव मिटाया।
जाति धरम की जंजीरों ने, जग में जाल बिछाया।
निष्काम भाव भक्ति से, मंगलमय विश्व बनाना।
बापूजी फिर से आना…………………………
दीवाने दनुज दौलत के, खेल भाव को छोड़ गये।
दौड़ में अंधी होड़ के, फिक्सिंग से नाता जोड़ गये।
गौरव गरिमा देश प्रेम की, उनको याद दिलाना।
बापूजी फिर से आना…………………………
-साहेबलाल ‘सरल”