बाधा और जीवन
बाधा के बिना यह जीवन क्या ?
जैसे बिन पानी मीन।
साहस और धैर्य संजोए रखिए,
तभी होएगी जीत।
बाधाओं से टक्कर लेना
है, विरोचित कार्य यही।
क्या दुःख और कैसी ये बाधा ?
बिन इनके आता मजा नहीं।
पथ के बाधाओं से लड़कर चले
वीर हंसकर आगे।
है ऐसी कौन सी बला भला ?
जो टिक सके उनके आगे।
वे हैं कायर जो बाधा देख ,
इक पल में ही घबराते हैं।
शूरमा नहीं विचलित होते,
कर पलट वार हर्षाते हैं।
जब घोर विपत्ति छाई हो,
और संकट में हो अपनी शान।
तभी असल मायने में होती
है, रणवीरों की पहचान।
वे ही यहां आगे बढ़ते हैं,
विघ्नों में रह जो पलते हैं।
जो हाथ धरे रह जाते हैं,
सच मानो वे ही पछताते हैं।
असली जीवन वे जीते हैं,
जो दुःख में पलते बढ़ते हैं।
क्योंकि ज्वाला में तपकर ही,
लोहा फ़ौलाद निकलते हैं।
” आओ हे वीरों प्रण करें,
इन विघ्नों से हम क्यों डरें ?
आ जाएं पथ में स्वयं काल,
निर्भय हो प्रचंड प्रहार करें।
कोशिश छोड़ यूं बैठ यहां ,हम
क्यों तिल-तिल कर रोज मरें।
अपने लक्ष्य को पाने में ,
चाहे वीरों की मौत मरें।”