बाधाएँ आयीं कितनी ही
बाधाएँ आयीं कितनी ही फिर भी पीछे हटा नहीं
डरते भला किसी से क्यों हम जब हमने की ख़ता नहीं
आँखों से आँसू किसान के बहे मगर नाकाफ़ी थे
धान देखती रही आसमाॅ छाकर बरसी घटा नहीं
मिला केमिकल गंगा में जब गंगा मैली हो बैठी
क्योंकि उसे बचाने कोई और भगीरथ डटा नहीं
यार गरीबी का आलम झोपड़ियों में जाकर देखो
जिस्म था वो इकलौता कुर्ता जब तक पूरा फटा नहीं
जल,जंगल,जमीन पर कब्जा करके कुछ न पाओगे
सब कुछ ऊपर वाले का है तेरा-मेरा बँटा नहीं
माँ-बाबू जी के साये में बेफिक्र हुआ करते थे हम
बच्चे खेला करते थे वो पेड़ था जब तक कटा नहीं
जीवन के प्रश्नों के उत्तर लिखा समझकर संजय ने
कैसे भला हू ब हू लिख दूँ मैने कुछ भी रटा नहीं