बाद मुद्दत के
जो कही
बाद मुद्दत के
तुम मुझे मिल जाओ
कैसा लगेगा तुम्हें
क्या लगेगा मुझे !
ढल रही थी शाम
रंग कितने बिखरे थे
फिर स्याह अंधेरे मे
डूब गया था आसमान
सहसा ही जल उठी थी
एक एक करके
सभी लाइट्स मेरे शहर की
दूर तक
उजालो ने रच दिया था
जैसे इक जादू
शायद मुझे ऐसा ही लगेगा
बाद मुद्दत के
जो तुम मुझे मिल जाओ