बादशाहत
जब भी चराग़ बनके हवा उड़ रही यहां,
घबराये लोग भाग के जाते यहां-वहां,
वो खुश हुआ की आंधियों के रुख बदल गए,
जो खेल-खेलता रहा सदियों से है यहां,
खुद को बता रहा है मसीहा कमाल का,
चेहरा बदल रहा है यहां का मग़र वहां,
कुछ लोग लगे उनको बनाने में फ़रिश्ता,
सौदागर बना मौत का अरसे से है यहां,
कोई तो दीया हो जो मुकम्मल यहां जले,
चलती रही तलाश है वर्षों से तो यहां,
कद अपना बढाके मुतमईन बहुत हुआ,
सारे सिपाही मोम के हैं खंजर नहीं यहां,