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26 Feb 2018 · 1 min read

बादल

विषय:-बादल

नदिया सागर नीर चुराकर बादल बनना बाकी है।
शुष्क धरा पर नेह लुटाकर मेघ बरसना बाकी है।

पनघट प्यासे गगन ताकते गीत अधूरे बिन सावन।
दीप जलाए बैठी आँगन नयन निहारें पथ साजन।
फूटे छाले कृषक देखता भू पर हर जन यज्ञ करे-
जीवन हुआ मरुस्थल सबका आस टूटना बाकी है।
नदिया सागर नीर चुराकर बादल बनना बाकी है।

तप्त सृष्टि अंबुद को तरसी धूप देह झुलसाती है।
सजल प्रीत की प्यासी धरती बारिश को अकुलाती है।
दादुर मोर पपीहे व्याकुल पीड़ित जन भी राह तकें-
मूक वेदना सहकर प्रतिपल उर का हँसना बाकी है।
नदिया सागर नीर चुराकर मेघ बरसना बाकी है।

गोरी का श्रृंगार अधूरा घेवर कंगन क्या भाएँ।
धानी चूनर ओढ़ देह पर कजरी सखियाँ ना गाएँ।।
चौबारे सखियों बिन सूने सूने ताल-तलैया हैं-
विटप तरसते वृंदावन के झूले पड़ना बाकी है।
नदिया सागर नीर चुराकर मेघ बरसना बाकी है।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
संपादिका-साहित्यपीडिया
वाराणसी

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Comment · 454 Views
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