बादल
मुनि से धुनि रमाये बादल
बैठे आसमान के आसन पर
छिड़क छिड़क जल धरती पर
आशीष लूटाते जाते हैं
बंजर भूमि की तृषा मिटाने
को आतुर
अमृत की रसधार
लुटाते जाते हैं
वारिधि बन, वन निधि
को शृंगारित
करने की ललक लिए
जलधार लुटाते जाते हैं
यौवन गंगा का
अक्षुण्ण रहे
वरदान बने
अपना अस्तित्व लुटाते जाते हैं.
ये मुनि से धुनि रमाये बादल
लुट लुट कर
अक्षय होने का
वरदान संजोये जाते हैं.