*”बादल”*
“बादल”
लुका छिपी खेल खेलता, काली घनघोर घटाओं में।
उमड़ घुमड़ कर गरज गरज कर शोर मचाता बादलों में।
बिजली चमकती जैसे आतिशबाजी सा ,नजारा फिजाओं में।
पुरवैया चली ठंडी हवायें ,सतरँगी बयार वादियों में।
हरियाली देख कोयलिया कूके,अमवा की डालियों में।
लालायित प्यासी धरती ,प्यास बुझाती वन उपवन में।
प्रकृति छटा रूप निराली, श्रृंगार किया इंद्रधनुषी रंगों में।
मेघदूत भ्रमण करते जल बरसाते, प्यासी धरा की प्यास बुझाने में।
मेघों की गर्जना सुन, मूक दर्शक सा सूरज छिप जाता बादलों में।
खुशियों की सौगात बिखेर, छेड़े तराने संगीत सुरों में।
आसमान की लालिमा रंग अदभुत छबि फिजाओं में।
बारिश के आगमन से, झूमते वृक्ष लतायें सदाबहार वनों में।
प्रकृति ने ओढ़ी चुनरिया श्रृंगार किया ,बारिश की बूंदों ने।
बादलों में चित्र उभरते हुए ,मनभावन दृश्य अलग अलग रूपों में।
शशिकला व्यास