बादल-१६ (रिमझिम के गीत)
बादल-१६ (रिमझिम के गीत)
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इक बार बरस जा, ओ बादल! मैं रिमझिम के गीत सुनाऊँ;
सूनेपन से झाँक रहे क्यों? मैं भी तुझे देख ललचाऊँ।
कोरे सावन के आँगन में
जन्म हुआ है भादों का,
विधि की कैसी लीला है यह
तपन शेष है सालों का?
प्यासे बादल! पानी पी लो
भाग-भाग थक जाते हो,
बैठ साख पर स्वेद सुखाओ
अल्हड़ राग सुनाते हो।
मीत बनो संगीत बनूँ मैं, फिर से कोई गीत सुनाऊँ;
सूनेपन से झाँक रहे क्यों? मैं भी तुझे देख ललचाऊँ।
झोंपड़ नींव तले जब बूँदें
टप-टप ढोल बजाती हैं,
वात्सल्यवश फिर-फिर माता
टिपटिप कथा सुनाती हैं;
सम्मोहनकारी किलकारी
देख तरस तुम खाओ तो,
नील वर्ण हे बादल सुन लो
अब तो ज़रा लजाओ तो।
उतर ज़रा धरती पर बादल, मैं नभपथ पर चढ़ता जाऊँ;
सूनेपन से झाँक रहे क्यों? मैं भी तुझे देख ललचाऊँ।
आशाओं की बूँद फेंक कर
बरबस भागे जाते हो,
अभिनंदन हम करें तुम्हारी
सुधा नीर बरसाते हो;
चलन सृष्टि की सार्वभौम है
तुम अनुरक्त न हो जाना,
चातक बन मैं तुझे निहारूँ
दुग्ध मेखला बन जाना।
वीरानों में मिलकर तुमसे, सहृदय मित्र व्यवहार निभाऊँ;
सूनेपन से झाँक रहे क्यों? मैं भी तुझे देख ललचाऊँ।
…“निश्छल”