बादल बरस भी जाओ
नखरे ना इतने दिखाओ,
बादल बरस भी जाओ।।1।।
पशु-पक्षी बेहाल हुए हैं।
मानव भी बदहाल हुए हैं।
पक्षी दर-दर भटक रहा है,
नीड़ भी जैसे जाल हुए हैं।।
अब तो ना देर लगाओ,
बादल बरस भी जाओ।
नखरे ना इतने दिखाओ
बादल बरस भी जाओ।।2।।
चारों ओर ही त्रास लगी है।
तुमसे ही तो आस लगी है।
उमड़-घुमड़ के आ भी जाओ,
तप्त धरा की प्यास जगी है।।
क्योंकर इतना सताओ,
बादल बरस भी जाओ।
नखरे ना इतने दिखाओ
बादल बरस भी जाओ।।3।।
विपदा आयी है बड़ी भारी,
विकल धरा के सब नर-नारी।
ढूंढ रहे दृग राह तुम्हारी,
छुप गए हो तुम कौन अटारी।।
अब तो लौट भी आओ,
बादल बरस भी जाओ।
नखरे ना इतने दिखाओ,
बादल बरस भी जाओ।।4।।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️