बादल की गागर
अभी अभी थी तेज की गर्मी
घिर आए हैं बादल,
काले-काले भूरे-भूरे
छाएं हैं अम्बर पर
पता नहीं कहां से लाते
भरकर अपनी गागर,
और डाल देते हैं हम पर
अपना सारा जल
डाली -डाली झूम रही है
पाकर वर्षा का जल ,
खेतों में हरियाली छाई
लगे हैं पेड़ों पर फल
झूम रहें हैं पेड़ और पौधे
झूम रही डाली-डाली,
धरती भी खुशहाल हो गयी
अब छाएगी हरियाली
बारिश सबको अच्छी लगती
बूढ़े हों या बच्चे,
मस्त मगन हो जाते हैं सब
तन पर पड़ती बूंदें
रुबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ