बादल का रौद्र रूप
मैने तो देखा सदा धरती के प्रति बादल का प्यार,
कभी नहीं देखा था ऐसा रौद्र रूप ऐसा व्यवहार ।
लेकर आता था अंक में भरकर बारिश की बूंदें ,
धरती आल्हादित होती थी अपनी पलकें मूंदे।
लहलहाने लगती थी उसकी धानी चुनरिया ,
आसमान की जब वोह खोलता था केवड़िया।
धरती के खिलखिलाते चेहरे को देख प्रसन्न होता था,
धरती के प्रति उसका सारा प्यार उमड़ पड़ता था।
रूठ भी जाता था कभी मगर मनुहार से मान जाता,
मगर इतना क्रोध तो वो पहले कभी नही करता था।
फिर अचानक ऐसा क्या हो गया जो क्रोधित हो गया,
सौम्य रूप से अचानक प्रलय रूप वो हो गया ।
वर्षा की गगरी भरकर तो लाया था सदा की तरह ,
परंतु क्यों सहसा फट पड़ा ज्वालामुखी की तरह।
शीतल नन्ही कोमल बूंदें बन बैठी गर्म तपती ज्वाला,
जिसने जीव जंतु ,खेल खलिहान ,मनुष्यों को निगल डाला।
एक प्रलयंकारी बाढ़ थी जो सब कुछ तबाह कर गई,
बादल की क्रोध अग्नि एक विनाश लीला मचा गई।