बादलों पर
नवगीत
★★★★★★★★★★
मुखड़ा
बादलों पर घर बनाया,
ख्बाव देखा एक प्यारा ।
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर हमारा ।
अंतरा .
नाव लहरों पर उछलती,
दिख रहा उद्भ्रांत सागर
वायु के पर को लगाकर,
,स्वप्न उड़ते आज तन धर ।
चाँदनी उतरी धरा पर
तब प्रिये ! तुमने पुकारा ।
कल्पना के गाँव में भी ,
कब बना है घर हमारा ।14
अंतरा
बन गये सिक्ता निशां पर
सीपियाँ मोती उगलती ।
सेतु जिस पर तुम मिले थे,
मछलियाँ प्यासी तड़पती।14
स्वप्न टूटा तब नयन से,
रेत के घर को निहारा ।14
कल्पना के गाँव में भी,
कब बना है घर हमारा ।14
अंतरा 3
वन गमन लक्ष्मण किये जब ,
विरहिणी ने कब कहा दुख ।
पीर सहती वो रही नित
पर विरह ही था अरी ! सुख ।
त्याग कर दुष्यंत ने कब,
था शकुन को था पुकारा ।
कल्पना के गाँव में भी ,
कब बना है घर हमारा।
★★★★★★★★★
स्वरचित
मनोरमा जैन पाखी
पाखी