बादलों के झरोखे से, सावन की मुस्कान (करोना काल)
बादलों के झरोखे से, सावन की मुस्कान
कुछ दिन की उमस घुटन
बादल घिरते ,
पर बरसे बिना निकल जाते ..
रोज मन कहता बरसो बादल बरसो …
शाम को बादल घिरते तो छत पर जाती ….
अपलक निहारती
मानों अच्छी दोस्ती हो ..
आज फिर बादलों के झरोखे से …
बिजली कड़की..
मौसम ठंडा हवा चली…
मैं छत पर चली गई ।
आज मेरी बादल से मुलाकात हो गई
पूछा मैने कैसे हो दादा?
वह मुस्कुराया ,’ठीक हूँ।’
फिर बोला ,’ हाल तो लोगों का पूछना है ,।’
तुम से तो रोज मुलाकात होती है…
रोज तुम्हे देखता हूँ
प्रकृति को निहारते
रिझाते
सोचा आज बात कर ही लूँ बहना।
मैने कहा ,’आज कल आप बड़े सुंदर व स्वच्छ विचरण कर रहे हो ।’
उसने कहा ,’हाँ !आजकल मानव घर में हैं
गाड़िया – स्कूटर सब बंद,
प्रदूषण बिल्कुल ही कम।
अब मुृझे धुएँ से परेशान हो आँखें नहीं मलनी पड़ती ।
दम घुटने पर गरजना नहीं पड़ता ।’
‘हाँ यह तो सच है ‘,मैने कहा।
बहुत खिलवाड़ किया था प्रकृति के साथ
शातिर दिमाग ,नई नई चालें ।’
मैं हैरान कितना सच कहा बादल ने ।
तभी तेज हवा चली
बूँदाबाँदी शुरू हो गई
सावन मुस्कान लिए हाजिर ..
अचानक लगा….
किसी ने सिर पर हाथ रख
आशीर्वाद दिया ।
मैने जल्दी से ऊपर देखा
बादल सिर के ऊपर से गुजर रहा था।
वहीं बैठ मैं यह नज़ारा निहारती रही..
वर्षा की बूँदों में भीगती सी
सावन का स्वागत
मीठी मुस्कान संग
नयनाभिराम
नयनाभिराम
………
नीरजा शर्मा