#कुंडलिया//
वह भी कैसी बात है , लिए नहीं ज़ज्बात।
बात सदा हो दीप सी , रोशन करदे रात।।
रोशन करदे रात , करे प्रेरित जो जनमन।
रीति नीति दे खास , खिलाए उर का चिल्मन।
सुन प्रीतम की बात , बात कह सोने जैसी।
छल की हो जो बात , बात वो फिर है कैसी।
काँटे कहें गुलाब से , इतराना दो छोड़।
हमसे लड़कर ही तुझे , कोई सकता तोड़।
कोई सकता तोड़ , गर्व भैया फिर कैसा।
समझो निज औकात , मान हमसे ही जैसा।
सुन प्रीतम की बात , बड़े क्या कोई नाटे।
ख़ूबी सबमें एक , फूल हों चाहे काँटे।
#आर.एस. ‘प्रीतम’