बात हो जाए अब आर या पार की
जी में सूरत उभर आई फिर यार की
कोई पाज़ेब इस क़द्र झंकार की
हुस्न के शह्र में मैं भटक जाता पर
याद उसकी हमेशा ख़बरदार की
हूँ मैं हैरान आई कहाँ से भला
ख़ासियत हुस्न में सिप्हसालार की
बेरुख़ी हुस्न वालों की फ़ित्रत है जब
ख़ाक लेंगे ख़बर अपने बीमार की
कर चुका मैं बहुत इंतिज़ार इश्क़ में
बात हो जाए अब आर या पार की
था न मालूम उड़ जाएँगी धज्जियाँ
अंजुमन में तेरी मेरे अश्आर की
है ख़ुशी का न ग़ाफ़िल ठिकाना मेरे
आज पहली दफ़ा उसने तक़रार की
-‘ग़ाफ़िल’