बात ही बात में क्या कही है
बात ही बात में क्या कही है
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बात ही बात में क्या कही है,
बात सुन के लगा वो सही है।
प्यार की नजर से देखता है,
प्रेम की आस जग सी रही है।
नूर बहता रहे चेहरे से,
बादलों से वर्षा सी बही है।
अर्श से फर्श पर खाक होता,
बन्द हो जिन्दगी की बही है।
आँख से टपकता नीर हो तो,
तोड़ने की लड़ी ही कही है।
आसमां से धरा रुसवां हैं,
प्यास धरती बुझी ही नहीं है।
मन कहे तुम रहो शांत सीरत,
दूध बिन ना जमे भी दही है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)