बात ‘सम्मान’ की
करूँगी ना समझौता कभी, मैं अपने स्वाभिमान से,
तख्त पलट कर रख दूँगी मैं, बात आई अगर मेरे आन पे ।
छोड़ूगी न दामन सच का, चाहे क्यों न जाए प्राण मेरे,
अगर किसी ने समझा दुर्बल, दिखा दूँगी दिन में तारे ।
कमजोर समझे जो नारी को, देखले वो तेवर मेरे,
तख्त पलट कर रख दूँगी मैं, बात आई अगर मेरे आन पे ।
नारी करुणा और दया मूरत समझी जाती है,
बेशक वो है ऐसी, किन्तु कायर न समझना उन्हें ।
गुलाम न समझना उन्हें अब, न सहेंगी दिए वो कष्ट तेरे,
दुष्टों ने दुष्कर्मों का, जवाब देगी वो गिन-गिन के ।
ललकारती है ये नारी, पुरुषों के वर्चस्व को,
कतरा-कतरा रक्त देकर, सींचा जिनके वजूद को ।
भूलाकर हमारे अहसानों को, जुल्म वो हमपर करें,
अब सहेंगी हम उनका, ऐसी भूल में वो ना रहें ।
कोमल हूँ तन से, किन्तु भ्रमित तू अब ना रहे,
तख्त पलट कर रख दूँगी मैं, बात आई अगर मेरे आन पे ।
⭐मेरी जीवन से जुड़ी एक घटना पर आधारित । आशा है आपको पसंद आए । ⭐