बात बिगड़ जाएगी
शीर्षक-बात बिगड़ जाएगी
रौद्र रूप में न आओ,
बात को न उलझाओ ।
आ जाऊं ताव में तो,
बात बिगड़ जाएगी।
गढ़े मुर्दे को न उखाड़ो,
होशयारी ज्यादा न झाड़ो।
आ जाऊं ताव में तो,
बात बिगड़ जाएगी।
मेरी बात को न काटो,
दिमाग़ को न चाटो।
आ जाऊं ताव में तो,
बात बिगड़ जाएगी।
बस करो चुप हो जाओ,
ज्यादा बकबक न करो
आ जाऊं ताव में तो,
बात बिगड़ जाएगी।
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रचनाकार डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822