बातों में बनावट सी नज़र आती है
बातों में बनावट सी नज़र आती है
मतलब की मिलावट सी नज़र आती है
फिर देखे मिरा रक़ीब तिरछी नज़र से
आँखों में लगावट सी नज़र आती है
जाने किस ज़माने का ख़त निकाला है
अपनी ही लिखावट सी नज़र आती है
कोई मान ले शायद रौब पैसे का
पारटियां भी दिखावट सी नज़र आती है
निकला देर का है घर से परिन्दा वो
कदमों में थकावट सी नज़र आती है
मुराद हो गई पूरी आज शायद
चौखट पे सजावट सी नज़र आती है
कैसे कट रहा है ‘सरु’ वक़्त ना पूछो
जीने में बनावट सी नज़र आती है