बातें
तुमसे हज़ारों बातें
रोज़ करती हूं….
सुबह और शाम करती हूं
सोचसोच कर नहीं,
जो मन में आए
बिना झिझक
हर बार करती हूं…
हंसती हूं, हंसाती हूं
रोती हूं, रुलाती हूं,
लड़ती हूं झगड़ती हूं
रुठती हूं, मनाती हूं…
अपना हर एहसास
तुमसे सांझा करती हूं….
कभी कभी तुम
मेरी बचकानी बातों से
झल्ला जाते हो
और अपनी झल्लाहट को
मुझसे ही छुपाते हो,
जानती हूं सब
पर फिर भी
तुम्हे परेशान करती हूं….
आखिर क्या है तुझ में
तेरी बातों में
जो तेरा इंतज़ार
मैं यूं बार बार ,
हर बार करती हूं