बाती की पुकार
देखते है हम बस दीये की रोशनी को
कोई नहीं देखता उस बाती की कुर्बानी को
जो जलाकर स्वयं को हर क्षण
जीवन में रोशनी दे रही है हम सभी को।।
कोई तो जीवन में तुम्हारे भी
बाती का काम कर रहा है
जो आज पहुंचे हो मंज़िल पर
कोई तो दिन रात जल रहा है।।
चाहता है देखना वो तुमको
खुश रहो तुम हमेशा जीवन में
जब नहीं रहेगा वो, फिर भी
खुशियां खेलती रहे तुम्हारे आंगन में।।
हमेशा करते है हमारे मां बाप
हमारे जीवन में बाती का काम
नहीं चाहिए उन्हें कुछ हमसे
खुश है, हमसे हो जो उनका नाम।।
माना आज उस छोटे दीपक से
सूरज बन गए हो तुम
समझते नहीं तुम अब कैसे
तेरे बिन जी रहे है हम।।
कभी तो आ जाया कर देखने
तेरी याद में कैसे कट रहे है दिन
बाती अब जल चुकी है पूरी तरह
नहीं रह पाएगी, अपने सूरज के बिन।।