बाढ़
– रूप माला छंद
बाढ़ से हालत विकट है,सब किया है नाश।
भूख से बेहाल हैं सब, देखतें आकाश।
हाय देवों ने लिखा है,भाग्य में संत्रास।
तब कहाँ दिखती वहाँ पर, जिन्दगी की आस।
सिर्फ जल ही जल,भरा है,अब यहाँ चहुँ ओर।
गाँव हैं डूबा समूचा,बच न पाया छोर।
बह गया जल में सभी कुछ, और टूटे श्वास।
लोग बेघर हो गये हैं,कुछ नहीं है पास।
दे गई चहुँ ओर लाशें, मर रहे हैं लोग।
त्रासदी देकर गयी है,हर तरह के रोग।
घूँट गम के पी रहें हैं, आपदा घनघोर।
छीन लेती है अचानक, जिन्दगी की डोर।
हे विधाता! पूछना है, क्यों दिया अभिशाप?
हम गरीबों से भला अब, क्यों खफा हैं आप?
पेड़ हमनें तो न काटे , पर हमीं लाचार।
हम गरीबों के घरों की, टूटती दीवार।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली