बाज
काट लिया खुद पंख को,बिन सिसकी आवाज।
नील गगन को नापता,वरना ये परवाज़।। १
मत काटो निज पंख को,सुन मन की आवाज।
उड़ जाओ उन्मुक्त तुम,बनो साहसी बाज।। २
निज ताकत सामर्थ्य से,बनो तेज परवाज़।
मुश्किल से डरता नहीं, कहलाता वो बाज।। ३
बादल से ऊपर उड़ो,अंबर के सरताज।
बाज कभी आता नहीं,अपने से भी बाज।। ४
दिव्य दृष्टि पैनी रखो,बादशाह बेताज।
नहीं लक्ष्य को भूलता,जो होता है बाज।। ५
बेलगाम बेखौफ हो,नव नूतन आगाज।
इतिहास बनाने के लिए,बदलो अपना आज।। ६
मंजिल की चाहत अगर, सोचो नहीं समाज।
निर्भय हो आगे बढ़ो, सभी करेंगे नाज।। ७
-लक्ष्मी सिंह