बाजार में जरूर रहते हैं साहब,
बाजार में जरूर रहते हैं साहब,
मगर बाजारू नहीं है।
बीमारियों का निदान ढूंढ रहे हैं,
मगर बीमारू नहीं है।।
है कायरों के बीच में अपना भी आशियां,
मुझपर अभितक बुझदिली का टैग नही है।
है जालिमों के बीच में भी उठना बैठना,
पर अपना जालिमों सा कोई स्वैग नहीं है।।
जय हिंद