बाजार भाव (कहानी )
बाजार भाव (कहानी )
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चार आवेदन पत्र डाक से आखरी दिन आए थे। इनको मिलाकर कुल अट्ठासी आवेदन पत्र हो गए। चपरासी का एक पद था और इतने ढेर सारे आवेदन पत्र।
अधिकारी ने सचिव से कहा “जितने भी आवेदन पत्र आए हैं, उन सब के नाम पते और योग्यता एक रजिस्टर में नोट कर लो फिर इनमें से छांट कर आठ-दस लोगों को इंटरव्यू के लिए बुला दिया जाएगा।”
सचिव ने कहा “जी हजूर ! यह काम आज शाम तक हो जाएगा ।”
“हां ,तुम अपना काम आज शाम तक निपटा लो । वैसे तो सारे आवेदन पत्रों पर विचार करने में दस पंद्रह दिन लग जाएंगे।”
” एक बात कहूं !” सकुचाते हुए सचिव ने अधिकारी महोदय से कहा।
अधिकारी ने प्रश्नवाचक मुद्रा में सिर उठाया और बोला “हूं ! बोलो !”
“सर मेरा भतीजा भी है । वैसे तो बी. टेक. कर चुका है मगर नौकरी कहीं नहीं लग रही। इसमें लग जाए तो बहुत अच्छा होगा। एक लाख रुपए आपको दे देगा।”
सचिव ने यह सोचकर ही एक लाख की बात की थी कि अधिकारी बगैर खाए- पिए नियुक्ति करने वाला नहीं है।
” एक लाख में चपरासी की नौकरी कहीं लगती होगी? पच्चीस हजार रुपये महीना मिलेगा । लेकिन खैर चलो देखेंगे। औरों का क्या रुख रहता है । बीटेक तो कोई खास बात नहीं है। दो-तीन एप्लिकेशन और भी हैं। आजकल इंजीनियरों को भी अच्छी जॉब कहां लग रही है?”
सुनकर सचिव का चेहरा फीका पड़ गया ।..”और हां , जब नोट करोगे रजिस्टर में, तब देखना कि तीन पीएचडी भी हैं। पोस्ट ग्रेजुएट और ग्रेजुएट की तो भरमार है। मेरे ख्याल से केवल आठवां पास तो एक भी नहीं होगा।”
सचिव की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या टिप्पणी करे। “जी हजूर ! आजकल नौकरियां कहां हैं। दो लाख दे देगा। मेरे भतीजे को नौकरी की जरूरत है।”
” देखो शर्मा ! तुम बात को समझ नहीं रहे हो । पच्चीस हजार रुपये की नौकरी चपरासी की लगेगी और बाजार भाव दस-बारह हजार का है । तो सोचो अंतर कितना हुआ ? एक महीने के तेरह हजार, यानी 1 साल के डेढ़ लाख । दो साल के तीन लाख बैठेंगे।”
“तीन लाख का ही इंतजाम करा दूंगा।आप बात कर लीजिए ।”
“तीन लाख तो केवल 2 वर्ष का वेतन का अंतर है ! लेकिन यह तो सोचो कि काम करना कितना-सा पड़ता है। बस केवल हाजिरी लगाना, इधर-उधर घूमना और फिर चले जाना । किसी प्राइवेट जगह पर कोई चपरासी का काम करे, तो क्या इतना-सा कर सकता है? खून निकाल लेंगे ,तब छोड़ेंगे। इसके भी तो तीन लाख बनते हैं।”
सचिव अब बेहद मायूस था उसने हार मान ली और सर झुका लिया । “सर! छह लाख तो नहीं हो पाएगा ।अगर चार लाख में आप कहें तो मैं भतीजे से बात कर सकता हूं। लेकिन वह भी कहां से देगा? भाभी के पास जो जेवर तोलकर हिसाब लगाया था, वह मुश्किल से दो- ढाई लाख का है । इससे ज्यादा नहीं हो पाएगा ।”
अधिकारी बोला “तुम अपना हिसाब जानो ,लेकिन मैं तो बाजार भाव से ही पैसा लूंगा।”
सचिव ने भतीजे को फोन लगाया और बाहर जाकर कुछ बुदबुदाते हुए बात करने लगा। लौट कर आया ,बोला “साहब ! छह लाख भतीजा देने को तैयार है ।आप हां करो।”
अधिकारी ने कहा” ठीक है ! बात पक्की।”
इसी बीच दफ्तर में फोन की घंटी बज उठी । सचिव ने फोन उठाया । कुछ बात सुनी । उसके मुंह से हड़बड़ाहट में यह शब्द निकले “क्या कह रहे हो ! …क्या चपरासी की नौकरियाँ बंद हो गयीं ?… आउटसोर्सिंग होगी ? ”
सुनकर अधिकारी का चेहरा भी सफेद पड़ गया । सचिव ने फोन रखा और बुझे हुए स्वर में कहा “साहब ! चपरासी की नियुक्तियाँ तत्काल प्रभाव से रोक दी गई हैं। आउटसोर्सिंग से दस -बारह हजार में ग्यारह महीने के लिए चपरासी रखे जाएंगे ।”
अधिकारी सिर पकड़ कर बैठ गया ।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )मोबाइल 99976 15451