बाज़ार
चलो आज समाज के नए पहलू से सबको रूबरू कराते हैं,
जो है हमारी रोजमर्रा जिंदगी का हिस्सा उस बाज़ार का आइना दिखाते हैं,
निर्जीव से लेकर सजीव तक जहां बिकता है सब कुछ,
उस बाज़ार में अपनी कीमत चलो इक बार पूछ कर आते हैं,
चढ़ते हुए पैसों के भाव को डॉलर से ऊंचा हम बनाते हैं,
अर्थ टिका अपने देश का जिस पर उस बाज़ार में घूम कर आते हैं,
हंसी लाने अपनों के चेहरों पर चलो मुस्कुराहट खरीदते हैं,
पर उसमे छिपी असल मुस्कान को समय के अभाव में कहीं छोड़ आते हैं,
संग चलने दुनिया के जो अपनी तहजीब ए संस्कृति हम छोड़ते हैं,
वक़्त की मार पड़ने पर उसी को स्वदेश रूप में हम अपनाते हैं,
अब तक होता द्वंद्व खेल में उसे बाज़ार तक ले जो आए हैं,
उस द्वंद्व में जीतने का अपनों को मौके कई देते है,
छिन गई जो खुशियां अपनों की प्रतियोगिता के साए में,
चलो उनको इसके काबिल बना उन्हें जिंदगी की नई खुशियां देते हैं