बागों में झूले पड़े
बागों में झूले पड़े ,रिम झिम गिरे फुहार।
मिल जुल सब आयीं सखी, कर सौलह श्रृंगार। ।
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बादल से बदरी मिली,
बुझा रही निज प्यास।
गौरी के मन में उठी,
पिया मिलन की आस। ।
सज धज कर आयीं सभी, खुद को खूब संवार।
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मनभावन सावन हुआ,
कोयल करे किलोल ।
चातक का मन मोद में,
सहज रहा है डोल।।
कौवा कौवी से कहै,कर ले सजनी प्यार।
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मस्ती में नाचें सभी,
खग,मृग, दादुर, मोर।
सरगम के सुर ताल पर,
पवन मचाए शोर ।।
प्रेम पाश में है बंधा, जीवन ये संसार।
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